संत ज्ञानेश्वर (1275-1296) महाराष्ट्र के एक महान संत, कवि और दर्शनशास्त्री थे, जो भक्ति आंदोलन के प्रणेता माने जाते हैं। वे मराठी संत साहित्य के सबसे महत्वपूर्ण और प्रभावशाली व्यक्तित्वों में से एक थे। उनका जन्म महाराष्ट्र के अलंदी गांव में हुआ था। उन्होंने बहुत ही कम आयु में संतवाणी का गहन अध्ययन किया और उसे अपने भक्ति मार्ग के रूप में प्रस्तुत किया।

संत ज्ञानेश्वर जीवन परिचय
ज्ञानेश्वर का जन्म एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता विठोबा और माता रुक्मिणी का निधन बचपन में ही हो गया था, जिसके बाद उनके बड़े भाई, निघोजी ने उनका पालन-पोषण किया। संत ज्ञानेश्वर ने बहुत कम उम्र में वेद, उपनिषद, भगवद गीता और अन्य धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन किया। वे विशेष रूप से भक्तिमार्ग के समर्थक थे और उन्होंने अपने जीवन में भगवान के प्रति गहरी भक्ति और प्रेम को महत्व दिया।
संत ज्ञानेश्वर का प्रमुख योगदान
- ज्ञानेश्वरी: संत ज्ञानेश्वर का सबसे प्रसिद्ध योगदान उनकी ‘ज्ञानेश्वरी’ है, जो भगवद गीता का मराठी में किया गया अनुवाद है। यह अनुवाद न केवल साहित्यिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि इसे भक्ति और तात्त्विक दृष्टि से भी अत्यंत मूल्यवान माना जाता है। ‘ज्ञानेश्वरी’ में उन्होंने भगवद गीता के संदेश को सरल और सुलभ भाषा में प्रस्तुत किया, ताकि सामान्य जन भी उसे समझ सकें।
- भक्ति आंदोलन: ज्ञानेश्वर ने भक्ति आंदोलन को बढ़ावा दिया और वे भक्तिवाद के सिद्धांतों के प्रवर्तक थे। उनका यह मानना था कि भगवान से सच्ची भक्ति ही मोक्ष का मार्ग है, और यह भक्ति बिना किसी जाति या धर्म के भेदभाव के हो सकती है। संत ज्ञानेश्वर ने यह सिद्ध किया कि भगवान के प्रति निष्कलंक प्रेम और भक्ति से ही आत्मा का उद्धार संभव है।
- समाज सुधार: संत ज्ञानेश्वर ने अपने समय के सामाजिक और धार्मिक कुरीतियों का विरोध किया। वे जातिवाद, पाखंड और मूर्तिपूजा के खिलाफ थे। उन्होंने समाज को एकता और समानता का संदेश दिया और यह कहा कि सच्ची भक्ति के लिए केवल दिल की शुद्धता और ईश्वर के प्रति सच्चा प्रेम होना चाहिए।
- रामकृष्ण परमहंस के प्रभाव: संत ज्ञानेश्वर के विचारों और उनके कार्यों का प्रभाव बाद में आने वाले महान संतों और योगियों पर पड़ा, जैसे रामकृष्ण परमहंस और स्वामी विवेकानंद। उनके कार्यों को एक अमूल्य धरोहर माना जाता है और उनका भक्ति मार्ग आज भी लाखों लोगों के दिलों को प्रेरित करता है।
संत ज्ञानेश्वर की मृत्यु और विरासत
संत ज्ञानेश्वर की मृत्यु मात्र 21 वर्ष की आयु में हुई, लेकिन उन्होंने अपनी जीवनकाल में जो अद्भुत कार्य किए, वह आज भी लोगों के दिलों में जीवित हैं। उनकी भक्ति और दर्शन को लेकर उनके शिष्य और अनुयायी आज भी उनके उपदेशों का अनुसरण करते हैं। उनके योगदान को देखते हुए उन्हें ‘ज्ञानेश्वर महाराज’ के नाम से भी पुकारा जाता है।
संत ज्ञानेश्वर के विचार और उनकी शिक्षाएँ भारतीय समाज में आज भी प्रासंगिक हैं। उनकी उपदेशों का प्रभाव न केवल महाराष्ट्र में, बल्कि सम्पूर्ण भारत में फैला है।
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