Droupadi Murmu Biography : द्रौपदी मुर्मू भारत की 15वीं राष्ट्रपति और पहली आदिवासी महिला राष्ट्रपति हैं। उनकी जीवन यात्रा प्रेरणादायक है, जो संघर्ष, परिश्रम और समर्पण का उदाहरण प्रस्तुत करती है। नीचे उनकी जीवनी को विस्तार से प्रस्तुत किया गया है:
विषय | विवरण |
---|---|
पूरा नाम | द्रौपदी मुर्मू |
जन्म तिथि | 20 जून 1958 |
जन्म स्थान | उर्पाड़ा गाँव, मयूरभंज जिला, ओडिशा |
धर्म | हिंदू |
जाति | संथाल आदिवासी |
पिता का नाम | बिरंची नारायण टुडू |
शिक्षा | बी.ए. (अर्थशास्त्र) – रमादेवी महिला महाविद्यालय, भुवनेश्वर |
वैवाहिक स्थिति | विधवा |
पति का नाम | श्याम चरण मुर्मू (मृत) |
संतान | दो बेटे (मृत), एक बेटी |
पेशेवर पृष्ठभूमि | शिक्षक, सामाजिक कार्यकर्ता |
राजनीतिक दल | भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) |
प्रमुख पद | – राष्ट्रपति, भारत (2022-वर्तमान) |
– राज्यपाल, झारखंड (2015-2021) | |
– मंत्री, ओडिशा सरकार (2000-2004) | |
– विधायक, ओडिशा विधानसभा (1997-2009) | |
अधिकारिक शुरुआत | पार्षद, रायरंगपुर नगर पंचायत (1997) |
महत्वपूर्ण उपलब्धियां | – भारत की पहली आदिवासी महिला राष्ट्रपति |
– झारखंड की पहली महिला राज्यपाल | |
– विभिन्न समाज सुधार परियोजनाओं में योगदान | |
सम्मान/पुरस्कार | – नीलकंठ अवार्ड, ओडिशा विधानसभा में सर्वश्रेष्ठ विधायक (2007) |
जीवन की प्रमुख घटनाएँ:
- प्रारंभिक जीवन एवं शिक्षा:
द्रौपदी मुर्मू का जन्म एक गरीब आदिवासी परिवार में हुआ था। उनके पिता और दादा ग्राम प्रधान थे। उन्होंने कठिन परिस्थितियों में शिक्षा प्राप्त की और सामाजिक सेवा के प्रति समर्पित रहीं। - करियर की शुरुआत:
शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने ओडिशा सरकार के सिंचाई विभाग में कनिष्ठ सहायक के रूप में काम किया। इसके बाद, उन्होंने रायरंगपुर में श्री अरबिंदो इंटीग्रल एजुकेशन सेंटर में शिक्षिका के रूप में सेवा दी। - राजनीतिक जीवन:
- 1997 में भाजपा से जुड़ीं और रायरंगपुर नगर पंचायत की पार्षद बनीं।
- 2000-2004 तक ओडिशा सरकार में वाणिज्य और परिवहन मंत्री रहीं।
- 2015-2021 तक झारखंड की राज्यपाल रहीं।
- राष्ट्रपति पद:
25 जुलाई 2022 को उन्होंने भारत की 15वीं राष्ट्रपति के रूप में शपथ ली, जिससे वे इस पद पर पहुंचने वाली पहली आदिवासी महिला बनीं।
व्यक्तिगत जीवन:
द्रौपदी मुर्मू का जीवन व्यक्तिगत स्तर पर कठिनाइयों और दुखों से भरा रहा। उन्होंने अपने दो बेटों और पति को खो दिया, लेकिन इन दुखद घटनाओं ने उनके आत्मबल को कमजोर नहीं किया। उन्होंने सामाजिक कार्य और देश सेवा के लिए अपने जीवन को समर्पित किया।
महत्व:
द्रौपदी मुर्मू का राष्ट्रपति बनना भारत के लोकतांत्रिक और समावेशी स्वरूप का प्रतीक है। उनके नेतृत्व और संघर्ष की कहानी समाज के सभी वर्गों को प्रेरणा देती है।
द्रौपदी मुर्मू की सम्पूर्ण जीवनी को सभी पहलुओं के साथ विस्तृत रूप में प्रस्तुत किया गया है। यह उनके जीवन की हर महत्वपूर्ण घटना और उपलब्धि को समेटे हुए है।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
- शिक्षा:
द्रौपदी मुर्मू ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा मयूरभंज के स्कूल से प्राप्त की। इसके बाद उन्होंने रमादेवी महिला महाविद्यालय, भुवनेश्वर से अर्थशास्त्र में स्नातक किया। - संघर्ष:
एक साधारण आदिवासी परिवार में जन्म लेने के कारण उन्हें अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। उनका जीवन हमेशा से संघर्ष और सादगी का प्रतीक रहा है।
पेशेवर जीवन की शुरुआत
- सरकारी सेवा:
द्रौपदी मुर्मू ने ओडिशा सरकार के सिंचाई विभाग में कनिष्ठ सहायक के रूप में कार्य किया। - शिक्षण क्षेत्र:
इसके बाद उन्होंने रायरंगपुर के श्री अरबिंदो इंटीग्रल एजुकेशन सेंटर में शिक्षिका के रूप में भी सेवा दी।
राजनीतिक जीवन
- प्रारंभ:
1997 में द्रौपदी मुर्मू ने राजनीति में कदम रखा और भाजपा से जुड़ीं। - प्रमुख पद:
- 1997: रायरंगपुर नगर पंचायत की पार्षद बनीं।
- 2000-2004: ओडिशा सरकार में वाणिज्य और परिवहन मंत्री।
- 2002-2004: मछली पालन और पशु संसाधन विकास मंत्री।
- 2000-2009: विधायक, रायरंगपुर विधानसभा क्षेत्र।
- 2015-2021: झारखंड की राज्यपाल।
- विधानसभा में उपलब्धियां:
2007 में उन्हें ओडिशा विधानसभा का “सर्वश्रेष्ठ विधायक पुरस्कार” दिया गया।
राष्ट्रपति पद
- चुनाव प्रक्रिया:
2022 में, भाजपा ने उन्हें राष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवार बनाया।
उन्होंने 25 जुलाई 2022 को भारत की 15वीं राष्ट्रपति के रूप में शपथ ली। - महत्व:
वे भारत की पहली आदिवासी महिला और दूसरी महिला राष्ट्रपति बनीं।
व्यक्तिगत जीवन और संघर्ष
- पारिवारिक कठिनाइयाँ:
द्रौपदी मुर्मू ने अपने जीवन में गहरे व्यक्तिगत दुख झेले। उन्होंने अपने पति और दो बेटों को खो दिया। - धार्मिक आस्था:
इन कठिन परिस्थितियों में भी उन्होंने अपनी आस्था और आत्मबल को मजबूत रखा। वे श्री अरबिंदो और आध्यात्मिकता से प्रेरित रहीं।
समाज सुधार और योगदान
- शिक्षा और महिला सशक्तिकरण:
द्रौपदी मुर्मू ने आदिवासी समाज में शिक्षा और महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा दिया। - आदिवासी अधिकार:
उन्होंने आदिवासी समुदाय के अधिकारों और उनके उत्थान के लिए कई परियोजनाओं का संचालन किया। - झारखंड में सुधार:
राज्यपाल के रूप में, उन्होंने झारखंड के आर्थिक और सामाजिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
सम्मान और पुरस्कार
- नीलकंठ पुरस्कार:
ओडिशा विधानसभा में “सर्वश्रेष्ठ विधायक” का सम्मान। - आदिवासी समुदाय का गौरव:
वे आदिवासी समाज की पहली महिला राष्ट्रपति बनने के कारण अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचानी गईं।
जीवन की प्रेरणा
द्रौपदी मुर्मू का जीवन संघर्ष, सादगी और आत्मबल का प्रतीक है। उनकी कहानी उन लाखों लोगों के लिए प्रेरणा है, जो कठिनाइयों से लड़ते हुए आगे बढ़ना चाहते हैं।
आपकी मांग के अनुसार द्रौपदी मुर्मू के जीवन के और अधिक पहलुओं पर विस्तृत जानकारी दी जा रही है। इसमें उनके जीवन के विभिन्न पक्षों को और गहराई से समझने का प्रयास किया गया है।
द्रौपदी मुर्मू का प्रारंभिक जीवन और परिवार
- परिवार:
द्रौपदी मुर्मू का जन्म एक आदिवासी परिवार में हुआ था। उनके पिता, बिरंची नारायण टुडू, एक गांव के प्रधान थे। उनके माता-पिता का जीवन बहुत साधारण था, लेकिन उन्होंने अपने बच्चों को शिक्षा और अच्छे संस्कार देने में कड़ी मेहनत की।
उनके परिवार में उनके पति श्याम चरण मुर्मू और दो बेटे थे, जो दुर्भाग्यवश कुछ साल पहले निधन हो गए। इस दुखद घटना के बावजूद द्रौपदी मुर्मू ने कभी अपनी धैर्य और संघर्ष की भावना को खोया नहीं। - शिक्षा:
उनका शिक्षा जीवन बहुत संघर्षपूर्ण था। ओडिशा के एक छोटे से गाँव में रहते हुए उन्होंने रमादेवी महिला महाविद्यालय, भुवनेश्वर से अर्थशास्त्र में स्नातक की डिग्री प्राप्त की। इस दौरान उन्होंने न केवल अपनी पढ़ाई में उत्कृष्टता हासिल की बल्कि यह भी प्रमाणित किया कि एक आदिवासी महिला के लिए शिक्षा प्राप्त करना कितना कठिन हो सकता है, फिर भी उन्होंने इसे सफलतापूर्वक पूरा किया।
राजनीतिक जीवन का आरंभ और योगदान
- प्रारंभिक राजनीति:
1997 में, द्रौपदी मुर्मू ने भारतीय जनता पार्टी (भा.ज.पा.) से जुड़कर अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत की। भाजपा के प्रति उनका झुकाव आदिवासी समुदाय के उत्थान और उनकी समस्याओं के समाधान के लिए था। - विधायक के रूप में:
2000 में उन्हें रायरंगपुर विधानसभा क्षेत्र से भाजपा उम्मीदवार के रूप में विधानसभा चुनाव में सफलता मिली। इसके बाद उन्होंने 2000-2004 तक ओडिशा सरकार में मंत्री के रूप में कार्य किया।- वाणिज्य और परिवहन मंत्री के रूप में उनकी उपस्थिति ने ओडिशा में सार्वजनिक परिवहन को सुधारने और व्यापार के अवसरों को बढ़ावा देने के लिए कई महत्वपूर्ण योजनाएं बनाई।
- इसके बाद, 2002 से 2004 तक, उन्होंने मछली पालन और पशु संसाधन विकास मंत्री के रूप में भी कार्य किया, जिसमें उन्होंने ग्रामीण क्षेत्रों में पशुपालन और कृषि गतिविधियों को बढ़ावा दिया।
- राज्यपाल के रूप में:
2015 में, द्रौपदी मुर्मू को झारखंड राज्य का राज्यपाल नियुक्त किया गया। राज्यपाल के रूप में, उन्होंने वहां के आदिवासी समुदाय और अन्य पिछड़े वर्गों के अधिकारों की रक्षा के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए।- उन्होंने झारखंड में शिक्षा, स्वास्थ्य और विकास के क्षेत्र में कई योजनाओं को लागू किया।
- उनका यह कार्यकाल राज्य में आदिवासी लोगों के लिए एक मील का पत्थर साबित हुआ, क्योंकि उन्होंने हमेशा उनके उत्थान के लिए काम किया।
- राष्ट्रपति पद की ओर:
2022 में, भारतीय जनता पार्टी (भा.ज.पा.) ने उन्हें भारत की राष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवार के रूप में चुना। उनका नामांकन भारतीय राजनीति के लिए एक ऐतिहासिक क्षण था, क्योंकि वे पहली आदिवासी महिला थीं जिन्हें राष्ट्रपति पद के लिए नामित किया गया था। उनके चुनाव की प्रक्रिया और चुनाव परिणाम ने आदिवासी समुदाय और महिलाओं के लिए एक नई राह खोली।
संघर्ष और व्यक्तिगत जीवन
- संघर्षपूर्ण जीवन:
द्रौपदी मुर्मू ने जीवन में कई कठिनाइयों का सामना किया। उनका व्यक्तिगत जीवन दुखों से भरा रहा। उन्होंने अपने दो बेटों और पति को खो दिया, लेकिन इन दुखों ने उन्हें कमजोर नहीं किया।- उनकी ताकत और आत्मबल उनके जीवन में संघर्ष के बावजूद प्रकट हुआ।
- उन्होंने अपनी शिक्षा और सामाजिक सेवा को आगे बढ़ाने का निर्णय लिया, जिससे न केवल उनके परिवार का नाम रोशन हुआ, बल्कि समाज के लिए भी उन्होंने एक मिसाल कायम की।
- आदिवासी समुदाय के लिए योगदान:
द्रौपदी मुर्मू ने हमेशा आदिवासी समुदाय के अधिकारों के लिए काम किया। झारखंड और ओडिशा में उनके कार्यकाल के दौरान उन्होंने आदिवासियों के लिए कई कल्याणकारी योजनाओं की शुरुआत की।- वे आदिवासी लोगों के अधिकारों के प्रति हमेशा सजग रहीं और उनकी संस्कृति, शिक्षा, और स्वास्थ्य को प्रमुखता दी।
- उनके प्रयासों के कारण आदिवासी समुदाय के लोगों को समाज में बराबरी का अधिकार मिल सका और उनके जीवनस्तर में सुधार हुआ।
राष्ट्रपति बनने के बाद के योगदान
- राष्ट्रपति के रूप में कार्यकाल:
25 जुलाई 2022 को, द्रौपदी मुर्मू ने भारत की 15वीं राष्ट्रपति के रूप में शपथ ली। राष्ट्रपति बनने के बाद उन्होंने सामाजिक न्याय, समानता और विकास के लिए अपनी नीतियों और दृष्टिकोण को स्पष्ट किया।- उनकी राष्ट्रपति बनने के बाद की प्राथमिकताएँ आदिवासी समुदाय के अधिकार, महिला सशक्तिकरण, और समाज के निचले वर्गों के उत्थान पर केंद्रित रही हैं।
- उन्होंने भारतीय संविधान की रक्षा करने का संकल्प लिया और हमेशा आदिवासी समुदाय के दृष्टिकोण से योजनाओं और नीतियों को लागू करने की दिशा में काम किया।
- महत्वपूर्ण योजनाएं और घोषणाएँ:
- सामाजिक सुरक्षा: उन्होंने समाज के गरीब और पिछड़े वर्गों के लिए विभिन्न योजनाओं का समर्थन किया।
- आदिवासी कल्याण: राष्ट्रपति के रूप में उन्होंने आदिवासी बच्चों के लिए शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं को बढ़ावा दिया।
- महिला सशक्तिकरण: उन्होंने महिलाओं के लिए विशेष योजनाओं की शुरुआत की, जिनसे उनके जीवन स्तर में सुधार हो सके।
सम्मान और पुरस्कार
- नीलकंठ पुरस्कार:
द्रौपदी मुर्मू को ओडिशा विधानसभा में उनके उत्कृष्ट कार्य के लिए “सर्वश्रेष्ठ विधायक पुरस्कार” दिया गया। - आदिवासी समाज के प्रेरणास्त्रोत:
वे आदिवासी समाज की पहली महिला राष्ट्रपति बनने के बाद एक प्रेरणा स्रोत बन गईं। उनका जीवन और कार्य आदिवासी समुदाय के लिए एक प्रेरणा है कि किसी भी मुश्किल परिस्थिति में भी लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है।
द्रौपदी मुर्मू का जीवन: एक प्रेरणा
द्रौपदी मुर्मू का जीवन संघर्ष, समर्पण और सफलता की कहानी है। उन्होंने न केवल खुद को साबित किया, बल्कि समाज के हर वर्ग को यह दिखाया कि कठिन हालात में भी सफलता प्राप्त की जा सकती है। उनका जीवन एक प्रेरणा है और उनकी यात्रा ने भारत में आदिवासी समुदाय और महिलाओं के लिए नए अवसर खोले हैं।