फेतल सिंह का प्रारंभिक जीवन

फेतल सिंह का जन्म रंका थाना के बाहाहारा गाँव में एक गरीब किसान परिवार में हुआ था। अशिक्षित होने के बावजूद, उन्होंने समुदाय के अधिकारों की रक्षा के लिए संघर्ष का नेतृत्व किया। वह बचपन से ही संघर्षशील और सामाजिक न्याय के प्रति समर्पित थे। उनका मानना था कि स्वतंत्रता का अर्थ जनजातीय समुदाय के लिए जमीन और जंगल पर पूर्ण अधिकार की वापसी है। उन्होंने कहा, “जमीन जोतने वाला ही उसका असली मालिक होना चाहिए।”
सामाजिक और राजनीतिक गतिविधियां
1950 के दशक के मध्य में, जब सरकार द्वारा वन अधिकार सीमित किए गए और कर लगाया गया, तो फेतल सिंह ने इसे अन्यायपूर्ण माना। उन्होंने महसूस किया कि आदिवासी समुदायों के परंपरागत अधिकारों को स्वतंत्रता के बाद भी बहाल नहीं किया गया।

फेतल सिंह ने 1957 में जंगलों और जमीन पर अधिकार की मांग को लेकर आंदोलन शुरू किया। उन्होंने खरवारों को संगठित किया और वन उत्पादों के मुफ्त उपयोग और कर समाप्त करने की मांग उठाई।
खरवार, झारखण्ड की एक प्रमुख अनुसूचित जनजाति, सामाजिक और आर्थिक स्तर पर लंबे समय से संघर्ष करती रही है। यह समुदाय मुख्यतः पलामू, गढ़वा, लातेहार, और आसपास के क्षेत्रों में निवास करता है। ऐतिहासिक रूप से, खरवार जनजाति सूर्यवंशी राजा हरीशचंद्र के पुत्र रोहिताश्व का वंशज मानती है। स्वतंत्रता के बाद सरकारी नीतियों और वन कानूनों ने उनके परंपरागत अधिकारों को सीमित कर दिया, जिससे असंतोष का वातावरण तैयार हुआ।स्त्रोत: जनजातीय कल्याण शोध संस्थान, झारखण्ड सरकार
वन आंदोलन की पृष्ठभूमि
1950 के दशक में, खरवार समुदाय ने वन कानूनों के खिलाफ आवाज उठाई, जो उनके परंपरागत अधिकारों को बाधित कर रहे थे। इन कानूनों ने उन्हें जंगलों और जमीन से वंचित कर दिया, जिससे उनकी आजीविका प्रभावित हुई। 1957 में, इस आंदोलन का नेतृत्व फेतल सिंह ने किया, जिन्होंने खरवारों को संगठित कर सरकारी नीतियों का विरोध शुरू किया।

आंदोलन की प्रमुख घटनाएं
- फेतल सिंह ने जंगलों में ठेकेदारों की कटाई का विरोध किया और लोगों से कर न चुकाने की अपील की।
- 1958 में, उनके नेतृत्व में एक संघर्ष हुआ जिसमें पुलिस और आंदोलनकारियों के बीच झड़पें हुईं।
- फेतल सिंह और उनके समर्थकों ने जनजातीय अधिकारों की वापसी के लिए सत्याग्रह और विरोध प्रदर्शन किए।
सरकार की प्रतिक्रिया और आंदोलन का अंत
सरकार ने आंदोलन को दबाने के लिए फेतल सिंह और उनके समर्थकों को गिरफ्तार किया। जेल में उनकी हालत खराब हो गई, जिसके बाद उन्हें रिहा कर दिया गया। हालांकि, आंदोलन बिना किसी ठोस सफलता के समाप्त हो गया।
फेतल सिंह की विरासत
31 दिसम्बर 1976 में फेतल सिंह का निधन हो गया, लेकिन उनके नेतृत्व ने खरवार समुदाय के बीच संघर्ष की भावना को जीवित रखा। उनका आंदोलन भारतीय जनजातीय इतिहास में एक प्रेरणादायक अध्याय है, जो आज भी जनजातीय अधिकारों और उनकी पहचान की लड़ाई के लिए प्रेरणा बना हुआ है।
शहादत दिवस के रूप में, हर साल 31 दिसम्बर को उनके पैतृकगाँव में याद किया जाता हैं।
स्त्रोत: जनजातीय कल्याण शोध संस्थान, झारखण्ड सरकार