परिचय
भारत के स्वतंत्रता संग्राम में अनगिनत वीरों ने अपनी जान न्योछावर की। उन्हीं में से दो नाम हैं नीलाम्बर और पीताम्बर। ये दोनों भाई झारखंड के वीर थे, जिन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ संघर्ष किया। इस लेख में नीलाम्बर-पीताम्बर के जीवनी, इतिहास (Nilamber Pitamber History) तथा उनके जीवन परिचय के बारे में बतायेंगे।
प्रारंभिक जीवन
नीलाम्बर-पीताम्बर दोनों भाइयो का जन्म झारखंड के पलामू जिले (वर्तमान में गढ़वा) में हुआ था। वे खरवार जाती से थे, उनके पिता चेमो सिंह एवं माता सान्या देवी थे जो एक जम्मिदार परिवार से ताल्लुक रखते थे। और उनके परिवार में परंपरागत तरीके से जीवन यापन होता था। बचपन से ही वे समाज में हो रहे अन्याय और अत्याचार के खिलाफ जागरूक थे।

जन्म – | ……… |
मृत्यु – | 28 मार्च, 1859 |
पूरा नाम – | नीलाम्बर सिंह , पीताम्बर सिंह (नीलाम्बर खरवार, पीताम्बर खरवार) |
पिता – | चेमो सिंह |
माता – | सान्या देवी |
जाती – | खरवार |
गाँव – | सनैया |
समाज के प्रति उनकी सोच
इन दोनों भाइयों का मानना था कि शिक्षा और स्वाभिमान के माध्यम से ही समाज को जागरूक किया जा सकता है। वे आदिवासी और अपने क्षेत्र के समुदाय के अधिकारों के लिए हमेशा खड़े रहे।
ब्रिटिश शासन का विरोध
ब्रिटिश सरकार की नीतियों से तंग आकर निलाम्बर और पीताम्बर ने उनके खिलाफ विद्रोह का नेतृत्व किया। उन्होंने स्थानीय लोगों को संगठित किया और स्वतंत्रता संग्राम का बिगुल बजाया। निलाम्बर और पीताम्बर ने छापामार युद्ध की रणनीतियां अपनाईं। उनके नेतृत्व में कई विद्रोह हुए, जिन्होंने ब्रिटिश सरकार को हिला कर रख दिया।
नीलाम्बर-पीताम्बर ने झारखंड के पलामू क्षेत्र में ब्रिटिश शासन के खिलाफ कई विद्रोहों का नेतृत्व किया। उनके नेतृत्व में हुए कुछ प्रमुख विद्रोह और उनके समयकाल की सूची नीचे दी गई है:
नीलाम्बर-पीताम्बर द्वारा नेतृत्व तथा सहयोग किए गए विद्रोहों की सूची
1. 1857 का स्वतंत्रता संग्राम (1857-1858) का नेतृत्व
1857 के क्रांति जिस प्रकार झाँसी में रानी लक्ष्मी बाई, बिहार में कुँवर सिंह महत्वपूर्ण थे उसी प्रकार ये दोनों भाई झारखण्ड के पलामू जिला से महत्वपूर्ण थे ।
– नीलाम्बर-पीताम्बर ने इस महासंग्राम के दौरान अपने क्षेत्र में ब्रिटिश शासन के खिलाफ संघर्ष किया।
– उन्होंने स्थानीय आदिवासी समुदाय को संगठित किया और विद्रोह में हिस्सा लिया।
2. पलामू विद्रोह (1858) का नेतृत्व
– यह विद्रोह पलामू क्षेत्र में हुआ था।
– दोनों भाइयों ने इस विद्रोह का नेतृत्व करते हुए छापामार युद्ध तकनीक का उपयोग किया।
3. जमींदारी कर विरोध (1855-1857) का नेतृत्व
– ब्रिटिश सरकार द्वारा लगाए गए अन्यायपूर्ण करों के खिलाफ आदिवासी किसानों को संगठित किया।
– उन्होंने ब्रिटिश अधिकारियों और उनके सहयोगी स्थानीय जमींदारों के खिलाफ संघर्ष किया।
4. आदिवासी जागृति आंदोलन (1857-1858) का सहयोग
– यह आंदोलन आदिवासियों को उनके अधिकारों और ब्रिटिश शोषण के खिलाफ जागरूक करने के लिए शुरू किया गया था।
– इस आंदोलन में नीलाम्बर और पीताम्बर ने अग्रणी भूमिका निभाई।
कठिनाइयों का सामना और उनकी बलिदानी
ब्रिटिश सरकार ने नीलाम्बर और पीताम्बर को पकड़ने के लिए हरसंभव प्रयास किया। उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और कठोर यातनाएं दी गईं, लेकिन वे अपने आदर्शों से नहीं डिगे। अंततः 28 मार्च, 1859 को लेस्लीगंज के चौराहे में स्थित पेड़ पर ब्रिटिश सेना द्वारा फांसी दे दी गई। और उनके पार्थिव शारीर को एक कुएं में डाल दिया गया, हालाँकि वह कुआं अब ढक चूका हैं लेकिन आज भी उस स्थान को बलिदानी कुआं के नाम से जाना जाता हैं।

उनकी विरासत
आज भी नीलाम्बर-पीताम्बर को झारखंड में महान नायकों के रूप में याद किया जाता है। उनके बलिदान ने आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित किया।
स्मारक और मान्यता
उनकी याद में पलामू का पहला युनिवर्सिटी नीलाम्बर-पीताम्बर युनिवर्सिटी बनाया गया तथा झारखंड में कई स्मारक बनाए गए हैं। उनकी गाथाएं आज भी लोगों को प्रेरित करती हैं।

निष्कर्ष
नीलाम्बर-पीताम्बर का योगदान स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में अमूल्य है। उनके साहस और बलिदान ने यह सिद्ध कर दिया कि सच्चे देशभक्त कभी हार नहीं मानते।
FAQs
1. नीलाम्बर और पीताम्बर कौन थे?
नीलाम्बर और पीताम्बर झारखंड के वीर स्वतंत्रता सेनानी थे, जिन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ विद्रोह का नेतृत्व किया।
2. उनका स्वतंत्रता संग्राम में क्या योगदान था?
उन्होंने स्थानीय आदिवासी समुदाय को संगठित कर छापामार युद्ध की रणनीति अपनाई और कई विद्रोह किए।
3. उनकी रणनीतियां क्या थीं?
छापामार युद्ध और स्थानीय जनता को प्रेरित करना उनकी प्रमुख रणनीतियां थीं।
4. उनकी विरासत आज कैसे जीवित है?
उनकी कहानियां और उनके नाम पर बने स्मारक आज भी उनकी विरासत को जीवित रखते हैं।
5. उनके सम्मान में कौन-कौन से स्मारक बनाए गए हैं?
झारखंड में कई स्थानों पर उनकी स्मृति में स्मारक बनाए गए हैं, जो उनके योगदान को याद करते हैं।
6. नीलांबर पीतांबर को फांसी कब दी गई थी?
28 मार्च, 1859 को लेस्लीगंज में ब्रिटिश सेना द्वारा फांसी दे दी गई।
नोट: अगर नीलाम्बर-पीताम्बर के बारे में और अधिक जानकारी आपके पास हो तो हमे मेल करे – Email- kharwarinfo@gmail.com
Leave a Reply