नो-डिटेंशन पॉलिसी (No Detention Policy) भारतीय शिक्षा प्रणाली में एक ऐसी नीति है जिसे विशेष रूप से RTI (शिक्षा का अधिकार अधिनियम) 2009 के तहत लागू किया गया था। इस नीति का मुख्य उद्देश्य कक्षा 1 से 8 तक के छात्रों को बिना असफल घोषित किए अगले कक्षा में प्रमोट करना है। यह नीति इस विचार पर आधारित है कि बच्चों पर असफलता का मानसिक दबाव न डालते हुए उन्हें शिक्षा के प्रति प्रोत्साहित किया जाए।
इस नीति के अंतर्गत, छात्रों को उनके शैक्षणिक प्रदर्शन के आधार पर रोका नहीं जाता। इसका उद्देश्य शिक्षा को समावेशी और छात्र-केंद्रित बनाना है। यह मान्यता है कि असफलता के डर से बच्चे स्कूल छोड़ने या पढ़ाई से विमुख हो सकते हैं। नो-डिटेंशन पॉलिसी यह सुनिश्चित करती है कि सभी बच्चे कम से कम 14 साल की उम्र तक प्राथमिक शिक्षा पूरी कर लें।
हालांकि, इस नीति को लागू करने में कई चुनौतियां सामने आईं। शिक्षकों और अभिभावकों का कहना है कि छात्रों को बिना उनके प्रदर्शन का मूल्यांकन किए आगे बढ़ाने से शैक्षिक गुणवत्ता में गिरावट आ सकती है। कई बार, बच्चे अगले स्तर की पढ़ाई के लिए तैयार नहीं होते, जिससे उनके सीखने की क्षमता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
सरकार ने इन चिंताओं को ध्यान में रखते हुए 2019 में आरटीई अधिनियम में संशोधन किया। इस संशोधन के तहत राज्यों को यह अधिकार दिया गया कि वे कक्षा 5 और 8 में छात्रों का मूल्यांकन कर सकते हैं। यदि छात्र परीक्षा में असफल होते हैं, तो उन्हें सुधार के लिए एक और मौका दिया जाएगा। यदि वे फिर भी पास नहीं होते, तो उन्हें रोका जा सकता है।
नो-डिटेंशन पॉलिसी का उद्देश्य शिक्षा में समानता और समावेशिता लाना है, लेकिन इसे प्रभावी बनाने के लिए शिक्षकों का प्रशिक्षण, उचित मूल्यांकन प्रणाली और छात्रों की व्यक्तिगत आवश्यकताओं पर ध्यान देना आवश्यक है। सही दृष्टिकोण और कार्यान्वयन के साथ, यह नीति बच्चों को शिक्षा के प्रति प्रेरित करने में सहायक हो सकती है।