राजा राम मोहन राय (1772-1833) भारतीय समाज सुधारक और ब्रह्म समाज के संस्थापक थे। उन्हें भारतीय पुनर्जागरण के प्रमुख व्यक्तित्वों में से एक माना जाता है। उनके कार्यों और विचारों ने भारतीय समाज में गहरे बदलाव लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

राजा राम मोहन राय का जीवन परिचय:
राजा राम मोहन राय का जन्म 22 मई 1772 को बांग्लादेश (वर्तमान में पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले) के राधनगर में हुआ था। वे एक ब्राह्मण परिवार से थे और उनका वास्तविक नाम राम मोहन रॉय था। उन्हें “राजा” की उपाधि उनके निष्ठावान सेवक होने के कारण अकबर द्वितीय द्वारा दी गई थी।
समाज सुधारक के रूप में योगदान:
राजा राम मोहन राय ने भारतीय समाज में व्याप्त कई कुरीतियों और अंधविश्वासों के खिलाफ संघर्ष किया। उन्होंने समाज सुधार के लिए कई पहल कीं, जिनमें प्रमुख थे:
- सती प्रथा का विरोध: राजा राम मोहन राय ने सती प्रथा (साथी के मरने के बाद पत्नी का जलाना) के खिलाफ कड़ा विरोध किया। उनका मानना था कि यह प्रथा महिलाओं के खिलाफ अत्याचार है। उन्होंने इस प्रथा को समाप्त करने के लिए ब्रिटिश सरकार से अपील की और 1829 में इसके निषेध के लिए कानून बनवाया।
- बाल विवाह के खिलाफ संघर्ष: उन्होंने बाल विवाह के खिलाफ भी आवाज उठाई और समाज में इस कुरीति को समाप्त करने के लिए प्रयास किए।
- महिलाओं के अधिकारों के लिए काम: राजा राम मोहन राय ने महिलाओं के अधिकारों के लिए भी काम किया। उन्होंने महिलाओं के शिक्षा और उनकी स्थिति को सुधारने के लिए कई पहल कीं।
- शास्त्रों में सुधार: राजा राम मोहन राय ने हिन्दू धर्म के शास्त्रों में सुधार की आवश्यकता महसूस की। वे सच्ची और सरल धार्मिकता पर विश्वास करते थे और संस्कृत और फारसी के शास्त्रों के अध्ययन में निपुण थे। उन्होंने हिदू धर्म में सुधार के लिए “ब्राह्म समाज” की स्थापना की, जो एक प्रकार का सुधारात्मक और एकेश्वरवादी धर्म था।
ब्रह्म समाज की स्थापना:
राजा राम मोहन राय ने 1828 में “ब्रह्म समाज” की स्थापना की। इसका उद्देश्य भारतीय समाज में धार्मिक, सामाजिक, और सांस्कृतिक सुधार लाना था। ब्रह्म समाज ने मूर्तिपूजा और अंधविश्वास का विरोध किया और एकेश्वरवाद (ईश्वर के एकत्व का सिद्धांत) की स्थापना की। ब्रह्म समाज का यह विश्वास था कि सभी धर्मों की सच्चाई एक ही है और सभी को समान रूप से स्वीकार किया जाना चाहिए।
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शिक्षा और दर्शन:
राजा राम मोहन राय का विश्वास था कि शिक्षा से ही समाज में सुधार किया जा सकता है। उन्होंने भारतीय शिक्षा प्रणाली में बदलाव की आवश्यकता महसूस की और पश्चिमी शिक्षा को महत्व दिया। उन्होंने संस्कृत, फारसी, और अंग्रेजी भाषाओं का अध्ययन किया और यूरोपीय विचारधाराओं को समझा। वे भारतीय संस्कृति और पश्चिमी आधुनिकता के बीच संतुलन बनाने की कोशिश करते थे।
मृत्यु और विरासत:
राजा राम मोहन राय का निधन 27 सितंबर 1833 को इंग्लैंड में हुआ। उनका योगदान भारतीय समाज में सुधार, शिक्षा और धार्मिकता के क्षेत्र में आज भी याद किया जाता है। उन्हें “भारतीय पुनर्जागरण का पूर्वज” कहा जाता है क्योंकि उन्होंने भारतीय समाज को जागरूक करने और उसे बेहतर बनाने के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए।
राजा राम मोहन राय का जीवन हमें यह सिखाता है कि एक व्यक्ति यदि दृढ़ संकल्प और सही दिशा में कार्य करता है तो वह समाज में व्यापक बदलाव ला सकता है।
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